Saturday, August 16, 2014

पहली मंज़िल की मुस्कान से लेकर मौत के शिखरों तक

ऊँगली से सरक्ते माँझे से लेकर आई-बो आई-बो कहते वो लव्ज़ भारत देश में ही सुन्ने को मिल सकते हैं।
जहाँ उमड़ता है प्यार मांझे और सद्दी से पेंच लड़ाकर। काट जाए जो उसकी उड़ती पन्नी, तो टूटी साँसों सी उड़ान उसकी, बन जाती मेरे चेहरे की ख़ुशी है।
अंधियारों से निकला हूँ उस ऊँच शिखर की ओर, जहां मिलते हैं खुशियाँ बटोरने को सब लोग।
है दिन ये बड़ा हरा, गुलाबी और हसीं। आओ तुम्हे दिखाए, है ये देश मेरा रंगीन।
मैं टिकाऊ जो नज़रें अपनी सीद में आती पन्नियों पर। कानों पर सरसराहट करता, दौड़ता हुआ, ढाई किलो मीटर प्रति घंटे की गती से निकलता मांझा नज़र आता हैं। पाने की चाहत उस  ख़ुशी को, मेरा मन बहकाती है। पल झपकते ही दोनों पन्नियाँ ठेंगा दिखलाती मुझे दूर चली जाती हैं।
उस सदी की पहली मंज़िल पर मिलना होता था जिस हवा से, वो आज मौत के शिखरों में तब्दील हो चुकी है।
बुलेटप्रूफ ना पहनकर श्लोक सुनाना तो बस एक नया पैंतरा है। 15 अगस्त 2 रुपए काम करके अगले माह 5 रुपए बढ़ाना भी तो तरक्की का ही बहाना है।
चाहे तू कोशिश कितनी भी कर ले, दरिया जाकर फिर भी तुझे रहना है। दोस्त ऐ मेरे, खुशियाँ पाना नहीं अब इतना आसान। मिलेंगे फिर किसी दिवस, किसी ख़ुशी के माहोल में.

लेता हूँ अलविदा कहकर तेरी मुस्कान से।



Dona paula beach, Goa 





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